उत्तराधिकार पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, महिला का मायका पक्ष भी परिवार का हिस्सा

उत्तराधिकार पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, महिला का मायका पक्ष भी परिवार का हिस्सा

सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू महिला के संपत्ति उत्तराधिकार मामले में एक अहम फैसला दिया है। कोर्ट ने कहा है कि हिंदू विवाहिता के मायके पक्ष के उत्तराधिकारियों को बाहरी नहीं कहा जा सकता। वे महिला के परिवार के माने जाएंगे।

सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू महिला के संपत्ति उत्तराधिकार मामले में एक अहम फैसला दिया है। कोर्ट ने कहा है कि हिंदू विवाहिता के मायके पक्ष के उत्तराधिकारियों को बाहरी नहीं कहा जा सकता। वे महिला के परिवार के माने जाएंगे। कोर्ट ने कहा कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 15 (1)(डी) में महिला के पिता के उत्तराधिकारियों को महिला की संपत्ति के उत्तराधिकारियों में शामिल किया गया है। इसके साथ ही कोर्ट ने महिला के देवर के बच्चों की याचिका खारिज कर दी, जिसमें महिला द्वारा अपने भाई के बच्चों को संपत्ति दिये जाने को चुनौती दी गई थी। 

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 15 (1)(डी) में ऐसे लोग संपत्ति के हकदार

याचिका में कोर्ट से पारिवारिक सेटलमेंट में परिवार के बाहर के लोगों को संपत्ति दिए जाने की डिक्री रद करने की मांग की गई थी। यह महत्वपूर्ण फैसला जस्टिस अशोक भूषण व जस्टिस आर.सुभाष रेड्डी की पीठ ने हाईकोर्ट और निचली अदालत के फैसलों को सही ठहराते हुए 22 फरवरी को सुनाया। कोर्ट ने हरियाणा के इस मामले में महिला के देवर के बच्चों की ओर से दाखिल अपील खारिज कर दी। यह मामला गुड़गांव के बाजिदपुर तहसील के गढ़ी गांव का है। केस के मुताबिक गढ़ी गांव में बदलू की कृषि भूमि थी। बदलू के दो बेटे थे बाली राम और शेर सिंह। शेर सिंह की 1953 में मृत्यु हो गई उसके कोई संतान नहीं थी। शेर सिंह के मरने के बाद उसकी विधवा जगनो को पति के हिस्से की आधी कृषि भूमि पर उत्तराधिकार मिला। जगनो ने फैमिली सेटलमेंट में अपने हिस्से की जमीन अपने भाई के बेटों को दे दी। जगनो के भाई के बेटों ने बुआ से पारिवारिक सेटलमेंट में मिली जमीन पर दावे का कोर्ट में सूट फाइल किया। 

उस मुकदमे में जगनों ने लिखित बयान दाखिल कर भाई के बेटों के मुकदमे का समर्थन किया और कोर्ट ने समर्थन बयान आने के बाद भाई के बेटों के हक में 19 अगस्त 1991 को डिक्री पारित कर दी।इसके बाद जगनों के देवर बाली राम के बच्चों ने अदालत में मुकदमा दाखिल कर पारिवारिक समझौते में जगनों के अपने भाई के बेटों को परिवार की जमीन देने का विरोध किया। देवर के बच्चों ने कोर्ट से 19 अगस्त 1991 का आदेश रद करने की मांग करते हुए दलील दी कि पारिवारिक समझौते में बाहरी लोगों को परिवार की जमीन नहीं दी जा सकती। 

अगर जगनों ने भाई के बेटों को जमीन दी है तो उसे रजिस्टर्ड कराया जाना चाहिए था क्योंकि जगनों के भाई के बेटे जगनों के परिवार के सदस्य नहीं माने जाएंगे। निचली अदालत से लेकर हाईकोर्ट तक से मुकदमा खारिज होने के बाद देवर के बच्चे खुशी राम व अन्य सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे। सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न पूर्व फैसलों का जिक्र करते हुए कहा कि कोर्ट पूर्व फैसलों में सभी पहलुओं पर विचार कर चुका है। कोर्ट ने कहा था कि परिवार को सीमित नजरिये से नहीं देखा जाना चाहिए बल्कि व्यापक रूप में लिया जाना चाहिए। परिवार मे सिर्फ नजदीकी रिश्तेदार या उत्तराधिकारी ही नहीं आते बल्कि वे लोग भी आते हैं जिनका थोड़ा भी मालिकाना हक बनता हो या जो थोड़ा भी हक का दावा कर सकते हों। 

कोर्ट ने भाई के बच्चों को कृषि भूमि देने के निर्णय को सही ठहराया

कोर्ट ने कहा कि इस मामले में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 की धारा 15 को देखा जाना चाहिए जिसमें हिंदू महिला के उत्तराधिकारियों का वर्णन है। इस धारा 15(1)(डी) में महिला के पिता के उत्तराधिकारियों को भी शामिल किया गया है। वे लोग भी उत्तराधिकार प्राप्त कर सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि जब पिता के उत्तराधिकारी उन लोगों में शामिल किए गए हैं जिन्हें उत्तराधिकार मिल सकता है तो फिर ऐसे में उन्हें बाहरी नहीं कहा जा सकता। 

TAGS # news # national # Supreme court # big decision of Supreme court # female side # Family Part # brother in law children Petition # सुप्रीम कोर्ट # मायका पक्ष # उत्तराधिकार # HPJagranSpecial # News # National News
For further details contact:


Dr. Ajay Kummar Pandey
( LLM, MBA, (UK), PhD, AIMA, AFAI, PHD Chamber, ICTC, PCI, FCC, DFC, PPL, MNP, BNI, ICJ (UK), WP, (UK), MLE, Harvard Square, London, CT, Blair Singer Institute, (USA), Dip. in International Crime, Leiden University, the Netherlands )

Advocate & Consultant Supreme Court of India, High Courts & Tribunals.

Delhi, Mumbai & Dubai
Tel: M- 91- 9818320572. Email: editor.kumar@gmail.com

Website:
www.supremelawnews.com
www.ajaykr.com, www.4Csupremelawint.com

Facebook: /4Clawfirm, /legalajay Linkedin: /ajaykumarpandey1 Twitter: /editorkumar / YouTube: c/4cSupremeLaw Insta: /editor.kumarg
Telegram Channel
Whatsup Channel

You can share this post!



2
Avoid Ads with Annual Subscription ₹1999/ ₹499 + GST