स्किन से स्किन टच के बिना सेक्सुअल असॉल्ट का मामला नहीं... हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ महिला आयोग सुप्रीम कोर्ट पहुंची

स्किन से स्किन टच के बिना सेक्सुअल असॉल्ट का मामला नहीं... हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ महिला आयोग सुप्रीम कोर्ट पहुंची

Posco Case Women Commission to Supreme Court: 

बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच के उस आदेश के खिलाफ जिसमें स्किन से स्किन टच के बिना सैक्सुअल असॉल्ट नहीं माना गया, महिला आयोग अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है।

बॉम्बे हाई कोर्ट के नागपुर बेंच के उस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में राष्ट्रीय महिला आयोग ने अर्जी दाखिल की है जिसमें हाई कोर्ट ने पोक्सो मामले में एक आरोपी को सेक्सुअल असॉल्ट के आरोप से बरी कर दिया था। राष्ट्रीय महिला आयोग की अर्जी में कहा गया है कि हाई कोर्ट ने पोक्सो के तहत सेक्सुअल असॉल्ट की गलत और व्याख्या की है।

हाई कोर्ट की नागपुर बेंच ने कहा था कि बिना स्किन से स्किन टच के पोक्सो के तहत सेक्सुअल असॉल्ट का केस नहीं बनता। इस फैसले के बाद अटॉर्नी जनरल ने मामले को सुप्रीम कोर्ट के सामने उठाया था तब सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों हाई कोर्ट के उक्त आदेश पर स्टे कर दिया था और अटॉर्नी जनरल से कहा था कि वह मामले में अर्जी दाखिल कर सकते हैं। इसी बीच राष्ट्रीय महिला आयोग की ओर से सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की है।

राष्ट्रीय महिला आयोग की ओर से महाराष्ट्र सरकार को प्रतिवादी बनाते हुए अर्जी दाखिल कर कहा गया है कि 19 जनवरी को बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच ने पोक्सो के तहत सेक्सुअल असॉल्ट की जो व्याख्या की है वह गलत है। याचिका में कहा गया है कि जो व्याख्या की गई है वह महिला के बेसिक राइट्स के किलाफ असर होगा। सुप्रीम कोर्ट के सामने दाखिल अर्जी में सवाल उठाया गया है कि क्या पोक्सो की धारा-7 के तहत सेक्सुअल असॉल्ट का केस तब बनता है जब सेक्सुअल नेचर का टच हो? याचिका में कहा गया है कि हाई कोर्ट ने स्किन से स्किन टच के बिना सेक्सुअल असॉल्ट नहीं माना और ये व्याख्या कानून के तहत गलत है।

याचिका में कहा गया है कि पोक्सो की धारा-7 के तहत कहा गया है कि अगर कोई शख्स किसी नाबालिग के शरीर के प्राइवेट पार्ट और ब्रेस्ट को टच करता है तो वह सेक्सुअल असॉल्ट माना जाएगा। इस परिभाषा में कहीं भी स्किन से स्किन टच की बात नहीं है। फिजिकल टच बिना कपड़ों के होना चाहिए ऐसा कानून में नहीं लिखा है। साथ ही इसके दूसरे पार्ट में कहा गया है कि सेक्सुअल नेचर का शारीरिक टच अगर है तो वह सेक्सु्अल असॉल्ट का अपराध है। लेकिन हाई कोर्ट ने धारा-7 के तहत सेक्सुअल असॉल्ट की गलत व्याख्या की है और वह खतरनाक नजीर बनेगा।

याचिका में कहा गया है कि क्रिमिनल जूरिस्प्रूडेंस के तहत जो तयशुदा सिद्धांत है उसके खिलाफ हाई कोर्ट ने पोक्सो कानून के तहत सेक्सुअस असॉल्ट की व्याख्या की है और ये कानून की नजर में गलत है। पोक्सो कानून स्पेशल एक्ट है और ये कानून बच्चों को प्रोटेक्ट करने के लिए बनाया गया है ताकि बच्चों को यौन अपराध से बचाया जा सके। लेकिन हाई कोर्ट ने इस कानून की गलत व्याख्या की । देश भर की अदालतों ने जो व्याख्या की थी उसके विपरीत हाई कोर्ट ने कानून की व्याख्या की है। हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की गई है।

गौरतलब है कि 27 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अगुवाई वाली बेंच ने हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी। इससे पहले अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने मामले को सुप्रीम कोर्ट के सामने उठाया था और हाई कोर्ट कोर्ट के आदेश का जिक्र किया था और कहा था कि मामले में गलत नजीर बनेगी और ऐसे में हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाया जाए। हाई कोर्ट ने इस मामले में 19 जनवरी को आदेश पारित किया था। हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि किसी नाबालिग का स्किन से स्किन टच हुए बगैर अगर कपड़े के ऊपर से अंदरूनी अंग को टच किया जाता है तो वह पोक्सो एक्ट के तहत सेक्सुअल असॉल्ट नहीं माना जाएगा। हाई कोर्ट ने कहा था कि ऐसा मामला छेड़छाड़ का माना जाएगा ये पोक्सो के तहत सेक्सुअल असॉल्ट नहीं माना जाएगा।
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Dr. Ajay Kummar Pandey
( LLM, MBA, (UK), PhD, AIMA, AFAI, PHD Chamber, ICTC, PCI, FCC, DFC, PPL, MNP, BNI, ICJ (UK), WP, (UK), MLE, Harvard Square, London, CT, Blair Singer Institute, (USA), Dip. in International Crime, Leiden University, the Netherlands )

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